नन की गिरफ्तारी पर मचा सियासी संग्राम, बोले राजीव- बस गलतफहमी थी

सत्येन्द्र सिंह ठाकुर
सत्येन्द्र सिंह ठाकुर

छत्तीसगढ़ के दुर्ग रेलवे स्टेशन से दो केरल की ननों की गिरफ्तारी ने न सिर्फ राज्य बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक और राजनीतिक बहस को हवा दे दी है। इस मुद्दे पर अब केरल बीजेपी अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर का बयान सामने आया है, जिसने मामले को नया मोड़ दे दिया है।

CBCI अध्यक्ष से मुलाकात, दी रिहाई की उम्मीद

राजीव चंद्रशेखर ने भारतीय कैथोलिक बिशप सम्मेलन (CBCI) के अध्यक्ष और त्रिचूर के आर्कबिशप एंड्रयूज थजथ से मुलाकात की। उन्होंने साफ कहा:

“यह गिरफ्तारी एक गलतफहमी का परिणाम है। जल्द ही दोनों ननों को जमानत पर रिहा किया जाएगा।”

मोदी और शाह ने भी दिलाया भरोसा

बीजेपी नेता ने बताया कि इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने दखल दिया है। उन्होंने राज्य सरकार से कहा है कि:

  • ननों की जमानत याचिका का विरोध न किया जाए

  • मामले को राजनीतिक चश्मे से न देखा जाए

  • यह एक न्यायिक प्रक्रिया है, राजनीति नहीं

कानूनी पहलू: किस नियम का उल्लंघन हुआ?

राजीव चंद्रशेखर के अनुसार, छत्तीसगढ़ में निजी प्लेसमेंट एजेंसियों के लिए एक विशेष कानून है। इसके तहत:

“अगर कोई युवती एक जिले से दूसरे जिले में नौकरी के लिए जाती है, तो उसे सरकारी पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन कराना होता है। ननों ने यह प्रक्रिया नहीं अपनाई, जिससे गैरकानूनी मानव तस्करी की गलतफहमी बनी।”

कैसे हुई गिरफ्तारी? जानिए पूरा मामला

तारीख: 25 जुलाई
स्थान: दुर्ग रेलवे स्टेशन, छत्तीसगढ़
गिरफ्तार: नन प्रीति मैरी और वंदना फ्रांसिस
साथ थीं: सुखमन मंडावी नाम की युवती
आरोप: स्थानीय बजरंग दल पदाधिकारी ने दावा किया कि तीन युवतियों का जबरन धर्म परिवर्तन और मानव तस्करी की जा रही थी।

पुलिस ने GRP कार्रवाई के तहत दोनों ननों को हिरासत में लिया और मामला दर्ज किया।

ईसाई समुदाय की चिंता और प्रतिक्रिया

CBCI के अध्यक्ष एंड्रयूज थजथ ने कहा:

“इस घटना से पूरे ईसाई समुदाय में दुख और असुरक्षा की भावना फैली है। हम चाहते हैं कि ननों को शीघ्र रिहा किया जाए।”

उन्होंने देश में ईसाई अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों का मुद्दा भी राजीव चंद्रशेखर के सामने उठाया।

राजनीति या प्रक्रिया? दोनों पहलुओं की जांच जरूरी

यह घटना न केवल धार्मिक और कानूनी उलझनों को सामने लाती है, बल्कि यह भी सवाल उठाती है:

  • क्या सरकारी प्रक्रियाओं की जानकारी की कमी को फौरन आपराधिक रंग दिया जाना चाहिए?

  • क्या धर्मांतरण के नाम पर वास्तविक सामाजिक कामों को रोका जा रहा है?

  • या फिर, क्या यह पुलिस की जल्दबाज़ी और राजनीतिक दबाव का मामला है?

संवाद ज़रूरी, सियासत नहीं

इस मामले में सत्य और न्याय की राह पर चलने की जरूरत है। राजनीतिक और धार्मिक तनावों को भड़काने की बजाय, संविधान और कानून की प्रक्रियाओं पर भरोसा रखा जाए।

राजीव चंद्रशेखर का बयान तनाव को कम करने की दिशा में एक पहल है — अब देखना यह है कि न्यायिक व्यवस्था कितना तेजी से काम करती है

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